गीले काग़ज़ की तरह है ज़िंदगी अपनी,
कोई लिखता भी नहीं और कोई जलाता भी नहीं,
इस क़दर अकले हो गये हैं आज काल,
कोई सताता भी नहीं और कोई मनाता भी नहीं !
कोई लिखता भी नहीं और कोई जलाता भी नहीं,
इस क़दर अकले हो गये हैं आज काल,
कोई सताता भी नहीं और कोई मनाता भी नहीं !
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